सुना है तुम्हें मैनें कई बार अपनी आँखों से भी !!

सुना है तुम्हें मैनें कई बार अपनी आँखों से भी गिरती हैं पलकें मेरी, तुम्हें सोचते हुये जब भी और कानों ने मेरे कई बार तुम्हें..........देखा भी है सरसराते हैं तुम्हारे होंठ कानों के पास मेरे जब भी मिट जाता है अंतर..........देखनें और सुननें का जब शोर मचाती ख़ामोशिया,कर देती हैं तब इत्मीनान भी मैं देख कर छू लूँ .......या छू कर फिर देखूँ तुम्हें सारा आलम तुम सा है अंदर भी और बाहर भी न कहूँ कुछ भी.......समझते हो हाले-दिल फिर भी करते हो कैसे,करते हो क्यूँ,गजब करते हो तुम भी