लोग होते हैं #अच्छे मगर क्या इतने ?

टुकड़े-टुकड़े होना और अन्दर कुछ टूटना भी शिक़ायते हैं बहुत, है पर मोहब्बत भी बरी करनें से उसके हाँ कुछ राहत तो है कि दवा भी है वही और मेरा दर्द भी लोग होते हैं अच्छे मगर क्या इतने ? कि जी रहा वो अपनें हिस्से का और मेरी लकीरों के हिस्से का भी