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Showing posts from June, 2021

तुम चले आओ कि......

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तुम चले आओ कि...... रात गहरी है  और बड़ी भी तुम चले आओ........ कि हम तन्हा हैं  और अधूरे भी तुम चले आओ कि....... जिस्म खाली है  पर तुम उसमें हो भी तुम चले आओ कि...... भूलना तुमको मुश्किल है और  मुश्किलें हैं तुम्हें याद करनें में भी तुम चले आओ कि........ ये दुनिया सुन्दर है पर  ज़रूरी है तुम्हारा इसमें होना भी !!! . . . तुम चले आओ कि.......  हम अब हैं भी  और नहीं भी !!!

करिये जब मोहब्बत तब ये तर्ज़बा होता है !!

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भरी महफ़िल में कोई  तन्हा कैसे होता है  करिये जब मोहब्बत  तब ये तर्ज़बा होता है  बंद आँखों से देखना  चेहरे को उसके और खुली आँखों में भी सपना उसका होता है  मिलनें और बिछड़नें पर  होते हैं एक ही जैसे हालात आनें पर चले जानें का और  जानें पर न आनें का ग़म होता है  ख़ामोशियाँ करे हैं आवाज़ और  आवाज़ें सभी रहती हैं खामोश हो मोहब्बत जिससे नहीं वो  किसी से कम लगता है  अक़्ल पर पड़ जाते हैं ताले पर  खुले रहते हैं दरवाज़े दिल के  पुर्ज़ा-पुर्ज़ा जिस्म का  उसका माईल होता है माईल - प्रशंसक  ©️Dr.Alka Dubey  #dralkadubey

कबीर और तुलसी के राम

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  कबीर और तुलसी के राम भारतीय संस्कृति में राम एक चिर परिचित नाम है।   राम की परिकल्पना हर युग हर भाषा के कवि ने अपनी-अपनी शैली में की है। भक्तिकाल के कवियों में कबीर दास एवं तुलसीदास दोनों   ने ही   अपने भावों की अभिव्यक्ति राम के माध्यम से की है। कबीर दास जी ने यह चित्रण आंशिक रूप में किया है जबकि तुलसीदास जी का समग्र साहित्य राम को ही समर्पित है। इन दोनों ही संत कवियों के कार्य में राम का वर्णन होते हुए भी दोनों के राम का स्वरूप भिन्न-भिन्न है। कबीर के राम निर्गुण ब्रह्म है। उनके राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम से अलग है। कबीरदास जी कहते हैः- दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना । राम नाम को मरम है आना ।। कबीर निर्गुण निराकार ब्रह्म के उपासक हैं और उन्होंने उसका नाम राम रखा। अर्थात उन्होंने अपनी भक्ति भावना को प्राप्त करने के लिए राम को आलंबन बनाया था।   कबीर अपने को सेवक और राम को सेव्य मानते हुए कहते हैः- कबीर कुता राम का मुतिया मेरा नाऊँ। गलै राम की जेवड़ी , जित खैंचे तित जाऊँ॥ वस्तुतः कबीर के राम बौद्दौ के शून्य ब्रह्म के प्रतिर...

करते हो कैसे,करते हो क्यूँ,गजब करते हो तुम भी !!

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सुना है मैनें तुम्हें कई बार अपनी आँखों से भी गिरती हैं पलकें मेरी, तुम्हें सोचते हुये जब भी और कानों ने मेरे कई बार तुम्हें..........देखा भी है  सरसराते हैं तुम्हारे होंठ कानों के पास मेरे जब भी मिट जाता है अंतर..........देखनें और सुननें का जब  शोर मचाती ख़ामोशिया,कर देती हैं तब इत्मीनान भी  मैं देख कर छू लूँ .......या छू कर फिर देखूँ तुम्हें  सारा आलम तुम सा है अंदर भी और बाहर भी न कहूँ कुछ भी.......समझते हो हाले-दिल फिर भी करते हो कैसे,करते हो क्यूँ,गजब करते हो तुम भी

प्रेम करना भी और प्रेम जताना भी !!

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बहुत कुछ जोड़ सकता है  किसी को किसी से...... धूप भी, बारिश भी हवायें भी, आसमान भी सूरज का ढलना और उगना  पहाड़ों पर संग टहलना भी  . . .  सूरज का आना बिस्तर पे कमरे में चमकना चाँद का  उड़ाना सिगरेट के छल्ले संग  और बीयर की दूकान भी बहुत कुछ जोड़ सकता है  किसी को किसी से.......  एक ही थाली में खिलाना-खाना  नींबू का अचार,गोभी के पराठे और बनारसी पान भी मांझे से लगी ऊँची उड़ती पतंग  वो छत वाला मकान भी बहुत कुछ जोड़ सकता है  किसी को किसी से.......  देवी का मंदिर अरदास गुरूद्वारे की चर्च की बेल और  मस्जिद की अजान भी . . . गीत भी, गज़ल भी सुर भी, तान भी  मीर के शेर और ग़ालिब का दीवान भी  बहुत कुछ जोड़ सकता है  किसी को किसी से...... प्रेम करना भी  और प्रेम जताना भी !!

प्रेम में डूबी स्त्री के पास प्रेम अपार होता है !!

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प्रेम में डूबी स्त्री के पास  प्रेम अपार होता है  और संभावना होती है  इसके और अधिक विस्तार की मन, मस्तिष्क के साथ-साथ वह करती है प्रेम  अपनें शरीर के समस्त  अंगों के माध्यम से भी करती है वह सृजन  मानव सृष्टि का  पोषती है सृष्टि को अपनें तन से करती है वह जो वह प्रेम का विस्तार है  प्रेम सृजन द्वारा  प्रेम पोषण द्वारा  प्रेम स्पर्श द्वारा और आलिंगन से प्रेम मिलन और विरह द्वारा भी हैं अनन्त,असीमित,अनगिनत  आयाम उसके प्रेम के कोमल है प्रेम उसका और कठोर भी प्रेम उसका समागम में  है प्रेम उसका आगम में  अद्धभुत है अनुभूति  उसके प्रेम की  क्योंकि  प्रेम में डूबी स्त्री के पास  प्रेम अपार होता है  !!

तुम भी आ जाओ बन के क़ायनात इक रात के लिए !!

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हमनें पाली है ख़ुमारी  इक बात के लिए तुम भी आ जाओ बन के  क़ायनात इक रात के लिए जंग लड़ती हूँ मै  खुद से तुम्हारे लिए हाँ नहीं तो ना भी मत करना,  मेरी ज़ात के लिए मैं इरादा अपना बदलूँ कैसे,  मेरे सामनें तुम हो कोई और होता तो मैं सोचती भी,  नहीं सोच सकती इस बात के लिए मुकम्मल करके मोहब्बत अपनी,  मैं तुम्हे खोना नहीं चाहती तुमको रखा है मैंनें ज़िन्दगी में अपनी,  इबादात के लिए रूह में तेरी बस कर सदियाँ  निभा जानी हैं हमको उतर जाओ मुझ में मेरे बन कर,  मेरे इस जज़्बात के लिए सब कहते हैं मुझ से मगर  तुम क्यूँ नहीं कहते गुज़र रहा है वक़्त आ जाओ  इक़ बार मुलाक़ात के लिए

लर्जिश उसके होठों की,

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लर्जिश उसके होठों की,  यूँ तो बहुत कुछ कहती थी मगर  मैंने  जो  समझा, मुझे  तो प्यार  ही  लगा आँखो  नें  उसकी  न   जानें  क्या-क्या  कहा ख़ामोशी में मुझे उसकी,  उसका इक़रार ही लगा चुपचाप देर तक खड़े रहना  और फिर...... चले जाना उसका दिल अब भी मुझे,  मेरे लिए बेक़रार ही लगा मिलता है बहुत लोगों से वो,  मगर देर तक बातें नहीं करता तन्हाई में रहना उसका हर वक्त, मुझको मेरा इन्तज़ार ही लगा

वो याद आता है ऐसे !!

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वो याद आता है ऐसे  हवा में सोंधी मिट्टी की खुशबू जैसे  मैं महसूस करती हूँ उसे  फिर महसूस करती जाती हूँ वह कश्मीर की वादियों सा  रहता है चेहरे पर मेरे  मैं धूप की किरणों सी  सुनहरी होती जाती हूँ वो यूँ होता है शामिल जिंदगी में मेरी  कि घुलता सा जाता है  वह मेरा होता जाता है  मैं उसकी हुयी जाती हूँ मेरे सारे तसव्वुर इस इत्मीनान पर  आकर ठहर गये हैं  वह मुकम्मल है मुझ में और मैं मुसलसल आगे बढ़ती जाती हूँ देखूँ जो चेहरा उसका  तो ख़ुद का नजर आता है  यूँ एक ही जान मैं  दो जिस्म में जगह पाती हूं

मेरी अधूरी इच्छा हो तुम

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https://www.facebook.com/DrAlka-Dubey-837469506653785/ मेरी अधूरी इच्छा हो तुम  मिलकर भी मिले नहीं  रह-रहकर हो जाते हो गुम क्योंकि,  मेरी अधूरी इच्छा हो तुम  प्रेम हो जाये अभिव्यक्त  तो वह प्रेम नहीं रहता  पूर्णता पाना है समाप्त हो जाना  तुम रहो संग मेरे अव्यक्त ही क्योंकि, मेरी अधूरी इच्छा हो तुम  नहीं हो पास मेरे  मगर हो हर पल कभी आधे,कभी पूरे  कभी स्वप्न,कभी विचार में हो तुम  क्योंकि,  मेरी अधूरी इच्छा हो तुम  स्पर्श तुम्हारा है असम्भव  सम्भवतः मेरी आत्मा हो तुम  पुर्नजन्म तो होना है  चलो,चलोगे क्या संग मेरे तुम क्योंकि, मेरी अधूरी इच्छा हो तुम  आशाओं के रक्त से सींचती अपूर्ण संसार अपना  शिराओं में बनकर लहू करो विचरण मुझमें तुम  क्योंकि, मेरी अधूरी इच्छा हो तुम  तकते हो चाँद मेरा  तकती हूँ जो मैं हर रात  तारों संग उजला आकाश आत्मीय सा आभास हो तुम  क्योंकि,  मेरी अधूरी इच्छा हो तुम  व्याकुलता,आकुलता,अधीरता लुप्त हो रही है समय में  रहना तुम्हारा स...

सीने पर रख कर सर को उसके अपनी धड़कनें सुननी हैं.......

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सीने पर रख कर सर को उसके  अपनी धड़कनें सुननी हैं   तुम पास आओ, पास रहो,  और पास हो जाओ मेरे यह बात कहनी है  तुम ताकना तारों को और मैं तुम्हें देखे चाँद ये नज़ारा और सोचे  किसकी ये चाँदनी है मैं सुलझाऊँ बालों को उसके और  उलझ जायें अंगुलियां मेरी ही उसमें लट ये उसकी ऐसी हैं  जैसे कान्हा की हैं मैं हाथों को अपने रखूँ  पीछे से कांधे पर उसके  और चलूँ ऐसे चलती है  जैसे कोई रेल गाड़ी है खेल खेले हम खेल खेल में ही  मैं बनूँ कभी बच्चा  और हो कभी वह ऐसे जैसे कोई सहेली है होना पूरा किसी का  किसी के होने से नहीं होता तुम कह देना तुम मेरे हो और मैं तुम्हारी  बस यही बात सुननी है सीने पर रख कर सर को  उसके अपनी धड़कनें सुननी हैं.......