किरदार !!

एक ही हैं हम, मगर कई क़िरदार में जीते हैं कभी धीमें तो कभी रफ़्तार में जीते हैं ज़िंदगी भी रोज़ नये तेवर दिखाती है हमें कभी नफ़रत तो कभी प्यार में जीते हैं कभी खुशियों को जीकर,कभी आँसुओं को पी कर कभी पतझड़ तो कभी.....बहार में जीते हैं बचपन के बाद जवानी और फ़िर बुढ़ापा आ ही जाता है मृत्यु अटल है, मगर फिर भी हम हर त्यौहार में जीते हैं तकदीरों का लिखा भला कहाँ पलट पाता है कोई इसी को पलटनें के प्रयास कर, हर बार में हम जीते हैं बदलना चाहते हैं दुनिया को,लेकिन खुद को नहीं बदलते खुद को सही समझते हैं......और इसी ख़ुमार में जीते हैं