क्योंकि प्रेम का कोई जेंडर नहीं होता....!!!!
सोचते हुए सोचना तुम्हें
और होना मुस्कान मेरे चेहरे पर
तुम्हारी अनुपस्थिति में भी
उपस्थित होना तुम्हारा
संग मेरे खेलना खेल बच्चों की तरह
घूमना मेरा संग तुम्हारे हवा की तरह
जीना हर रिश्ता हर पल साथ तुम्हारे
कभी बन बच्चा कभी सहेली, जैसे
कभी दो प्रेमी बैठे संग नदी किनारे
सपनों का सागर
आसमान से बड़ी आशायें
कल्पनाओं का अंबार और
नर्म घास की बड़ी सी चादर पसार
मैं खेलती हूं रंगों से संग तुम्हारे
रंग जो लाल है और तासीर जिसकी प्रेम है
क्योंकि प्रेम का कोई
जेंडर नहीं होता....!!!!
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